Yadav(यादव जाट)
जानकारी
- यादव जाट
यादव गोत्र जाट उत्तर प्रदेश में पाए जाते है। यह अनेक जाट गोत्रों के पूर्वज थे। यादव जाट गोत्र के पूर्वज थे। यादव जाट गोत्र अहोरो में भी पाया जाता है। यादव गुजरात में भी अंजना जाटों का एक गोत्र है। जाटों में यादव गोत्र के अस्तित्व से पता चलता है कि कुछ यादव जाट महासंघ में शामिल हो गए ।
इससे यह भी पता चलता है कि जाटों फेडरेशन का गठन यादव फेडरेशन से पहले हुआ था।
- मूल
इन्हे महाराजा यदु का वंशज कहा गया है।
“यादव तो श्री कृष्ण जी का गोत्र था।”
राजा और योगी, नेता और सेवक, विहान , क्रांतिकारी गोपालक, राष्ट्रनिर्माता, शांति का मूर्तरूप संसार में जन्म से मृत्यु शुभ कर्म करने वाला यदि कोई महापुरुष हुआ है। वह है योगीराज श्री कृष्ण जी महाराजा। इनका यादव गोत्र था, यह गोत्र केवल जाटों में मिलता है। यह गोत्र अहिरो में नहीं है।
ब्रज में गोवर्धन एक तीर्थ है। भगवान श्री कृष्ण के पिता वासुदेव जी यही के रहने वाले थे। वे यादवों की वृष्णि शाखा के श्त्रीय थे। वे ही वृष्णी कुल के अधिपति थे।उन्ही दिनों मथुरा में भोजकुल का सरदार कंस राज्य करता था। कंस की देवकी नामक बहन वासुदेव जी को ब्याही थी। कंस बड़ा प्रताशी और प्रसिद्ध राजा था।
प्रत्येक गोत्र का अपना एक राज्य था महाभारत में बहुत से गोत्र राज्यों का वर्णन मिलता है। हर एक गोत्र का समस्त जनसमूह एक ही जगह पर आबाद था । बिलकुल वैसे ही जैसे की चाहरवाटी, के चाहर गोत्र के लोग , विपावटी में विदावत, तंवरावती में तंवर ak भूभाग पर इक्ठे आबाद थे । वर्तमान में जैसी भिन्न भिन्न खापों के लोग गावों के रूप में इकठे आबाद है |
- इतिहास
इस सुप्रसिद्ध प्राचीन श्त्रीय वंश के प्रवतर्तक महाराज यदु थे।
जो स्वयं चंद्रवंश में जन्मे थे। यह “चंद्र” उस महापुरुष का नाम है जो ब्रह्मा के पुत्र अत्री के पुत्र थे। शारीरिक शास्त्रके प्रकांड पांडिव्य के कारण ये ओषधिप्ति के नाम पर प्रसिध हुए।
इन्होंने राजसूय यज्ञ करके आचार्य ब्रस्पति की पत्नी तारा को छीनकर अपनी पटरानी बना लिया जिससे की सूर्य और चंद्र वंश को पारस्परिक मित्रता हो गई।
ये बंधु अर्थशास्त्र एवम हस्ति शास्त्र के प्रवर्तक हुए। इन्ही के पुत्र पुरुरवा थे जिन्हे अपने नाना के विशाल राज्य प्रतिष्ठानुपुर का राजा बनाया गया। यह नगर मनु ने अपनी पुत्री इला के विवाह समय सत्कारार्थ दे दिया था।
इस सम्राट पुरुरवा को सात द्वीप पति मृदेश ब्रह्मावादी, मंत्र हष्प और राजर्षी कहकर पुराणों ने आहत किया है।
इन्होंने परम सुंदरी उर्वशी को अपनी महारानी बनाया।इनके चार पुत्रों में आयु अमावासू ने वंश वृद्धि की।
इतिहासकारों के अनुसार चीन , मंगोलिया तातर देशों को बसाने में आयु ने विशेष सफलता प्राप्त की।
जाट कोई जाति नहीं अपितु एक संघ का नाम है। जाट का अर्थ है उपजाति या जाति न मानकर समाज मानना चाहिए प्रत्येक ऐसे वंश और व्यक्ति के लिए जाट समाज में प्रविष्ट होने का अधिकार है जो वैदिक अर्थों की रसम रिवाज का पालक हो । जाति राष्ट्र ( गणराज्य) प्रजातंत्र पद्धति को साम्राज्यवाद से अच्छा समझता हो।
शांति के समय हल और अशांति के समय तलवार धारण करना अपना कर्तव्य मानता हो अर्थात वर्तमान में ” जय जवान -जय किसान- जय विज्ञान” में विश्वास रखकर हर क्षेत्र में प्रगतिशील हो।
यादव भारत की सभी जनजातियों में सबसे प्रतिष्ठित थे , और चंद्र जाति के पूर्वज , बुध के वंशजों के संरक्षक बन गए।
कृष्ण की मृत्यु और उनकी शक्ति के अंतिम गढ़ दिल्ली और द्वारिका से अनेक निष्कासन पर युधिष्ठिर और बलदेव, सिंधु के पार मुल्तान से सेवानिवृत्त हुए, पहले दो को छोड़ दिया जाता है।
- यादव वंश
इस सुप्रसिद्ध प्राचीन वंश के प्रवर्तक महाराजा यदु थे जो स्वयं चंद्रवंश में जन्मे थे।
चंद्र ने आचार्य बृहस्पति की पत्नी तारा को छीनकर अपनी पटरानी बना लिया जिससे बुध नामक पुत्र हुआ। जो कि देवो द्वारा चढ़ाई करके तारा को ब्रह्पस्पति को दिलवा देने के बाडब्भी सम्राट चंद्र के ही पास रहा। इसी चंद्र के नाम से ही चंद्रवंश प्रचलित हुआ। बुध का विवाह मनु कन्या इला से हुआ । जिससे सूर्य और चंद्रवंश को आपस में मैत्री हो गई। बुध का पुत्र पुरुरवा हुआ जिससे अलवंश की प्रसिद्धि हुई।
महाराजा ययाति का पुत्र अपने पिता का सेवक व आज्ञाकारी था, इसी कारण ययाति नेवपुरु को राज्य भर दिया परंतु शेष पुत्रों को भी राज्य से वंचित न रखा।
यदु को दक्षिण का भाग ( जिसमे हिमाचल प्रदेश, पंजाब ,हरियाणा , राजस्थान , दिल्ली तथा इन प्रांतों से लगा उत्तरप्रदेश, गुजरात एवम कच्छ है।
तुर्वासु को पश्चिम का भाग ( जिसमे आज पाकिस्तान , अफगानिस्तान, ईरान ,इराक, सऊदी अरब , यमन , केन्या , सूडान, मिश्र , लीबिया, अल्जीरिया, तुर्की, युनाम है।
द्रह्यु को दक्षिण का भाग दिया।
अनु को उत्तर का भाग आज के हिमाचल पर्वत से लेकर उत्तर में चीन , मंगोलिया ,रूस, साइबेरिया, उत्तरी ध्रुव आदि सभी इस में है।
पुरु को सम्राट पद अभिषेक कर, बड़े भाईयो को उसके अधीन रखकर ययाति वन में चला गया। यदु से यादव क्षत्रिय उत्पन्न हुए।
तुर्वसू की संतान यवन कहलाई, द्रुहयु के पुत्र भोज नाम से परसिद्ध हुए। अनु से म्लेच्छ जातीया उत्पन्न हुई। पुरु से पौरव वंश चला।